आज भले ही इनकी फिल्मों पर मीम बनते हैं, लेकिन अपने जमाने
में इनकों इन्ही स्टाइल की वजह से लोग बहुत ही पसन्द करते थे। आज हम कैप्टन विजयकान्त सर के बारे में बात करेंगे। आज हम जानेंगे इनसे जुड़ें कुछ अनसुनी बाते और इनके जीवन संघर्ष की बातें जिनके बारे में आज शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं।
रजनीकान्त और कमल हासन को भी देते थे टक्कर
साउथ की फिल्मों की पुराने जमाने यानि की 80 और 90 के दशक की बात की जाये तो हमें सिर्फ रजनीकांत और कमल हासन का ही नाम याद आता है और लोग यही मानते हैं कि उन दिनों में रजनीकान्त और कमल हासन का ही कम्पीटीशन हुआ करता था। लेकिन आपकों बता दे कि 80 और 90 के दशक में विजयकान्त ही ऐसे एक्टर थे जिन्होंने इन दोनों एक्टर को बॉक्स ऑफिस पर टक्कर दी हैं। साल 1992 में रजनीकान्त सर की फिल्म मन्नान पोंगल पर रिलिज हुई जो कि इण्डिस्ट्री हिट रही ठीक इसी दिन विजयकान्त सर की फिल्म चिन्ना ग्राउण्डर रिलिज हुई और यह फिल्म भी ब्लॉकबस्टर रही। जहां पर रजनीकान्त सर की फिल्म ने ज्यादा अच्छी कमाई करी वहीं विजयकान्त सर की फिल्म ज्यादा दिनों तक चलती रही।
अब हम विजयकान्त सर के जीवन के बारे में कुछ अन्य बाते जानते हैं
विजयकान्त सर का असली नाम है विजयराज अलगरस्वामी था। इनका जन्म 25 अगस्त,1952 को मदुरई में हुआ, इनके पिता का नाम है केआन अलगरस्वामी और माता का नाम आंदल अलगरस्वामी है। इनके पिता एक किसान थे और माँ हाउसवाईफ थी। दोस्तो विजयकान्त सर बचपन से ही एक्टर बनना चाहते थे इनके फेवरेट हीरो लेजेण्डरी एक्टर एन.जी. आर. सर थे। इनके समय में डार्क स्कीन वाले लोगों को हीरो के लिए नहीं लिया जाता था लेकिन रजनीकान्त सर ने इस मिथ को तोड़ा और डार्क स्कीन मैन होते हुइ भी फिल्मी जगत में एक अलग ही पहचान बना ली थी। इसके बाद डार्क स्कीन लोगों को भी एक्टर बनने का मौका दिया जाने लगा। जब विजयकान्त सर डायरेक्टर के पास काम मांगने के लिए जाते थे, तो विजयकान्त सर रजनीकान्त सर की कॉपी करते थे लेकिन फिर भी इनको कई बार रिजेक्ट कर दिया गया था। एक समय ऐसा आया जब इनको लगा की अब कुछ भी हो यह किसी भी एक्टर को कॉपी नहीं करेंगे और अपने कुछ के अभिनय पर फॉकस किया और अपनी खुद की एक स्टाइल बनाई और फिल्मों में काम पाने की कौशिक करी।
1975 से 1980 के बीच रजनीकान्त सर और कमल हासन सर ने एक अच्छी पहचान बना ली थी लेकिन विजयकान्त सर ने 1979 में अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत की और अपनी पहली फिल्म इन्नकुम इलमई में बतौर लीड हीरो के रूप में काम किया। इसके साथ ही इन्होंने 3—4 फिल्में और भी की लेकिन इनकों सफलता नहीं मिली और यह दर्शकों के बीच अपना जलवा नहीं दिखा सके। इनको सफलता साल 1981 की फिल्म सत्यम औरू इरेतुराई से मिली, जिसके डायरेक्ट कर रहे थे हाल ही के एक जाने माने सुपरस्टार विजय थलापति के पिता एस.एस. चन्द्रशेखर साहब थे।इस फिल्म को लोगों ने खुब अच्छा रिस्पॉन्श दिया और यह विजयकान्त सर की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म थी। इसके बाद इन्होंने 1984 तक 4 साल में ही 18 फिल्मों में काम किया जो कि उस समय इतने कम समय में सबसे ज्यादा फिल्में करने वाले पहले हीरों बनें।